क्या हम सच में आज़ाद हुए हैं ? क्या हम अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं ?


हमारे देश को आज़ाद हुए 75 वर्ष हो गए है लेकिन आज भी हम गुलाम ही है ,  भले ही आपको बुरा लगे लेकिन ये ही सच्चाई है , मैं कुछ ऐसा उदहारण दूंगा जिसे आप नकार नहीं सकते और आपको भी ये सच स्वीकार करना पड़ेगा की भले ही हम आज़ाद हो गए है लेकिन हमारे सोच हमारे विचार धारा पर हमारे पहनावे पर आज भी उनका ही कब्ज़ा है !

आप सभी जानते हैं की हमारे धर्म में दीपावली क्यों मनाते हैं और कितनी श्रधा से मनाते हैं , ऐसे ऐसे त्यौहार ही हैं जो लोगों के बिच आस्था और प्यार बनाये रखते हैं , वरना कुछ लोगों ने तो पूरी कोशिश कर ली थी हमारे सनातन धर्म को झूठा साबित करने की ! लोग आज भी ये कोशिश किये जा रहे हैं , और हम क्या करते हैं दीपावली के दिन मिठाई के नाम पर कैडबरी जैसे डब्बों को बढ़ावा देते हैं ;

बूंदी , खीर , आम रस , कलाकंद , रसगुल्ला , रसमलाई , मावा बर्फी , गुलाब जामुन , काजू कतली , गाजर का हलवा , कई तरह के पेडे , कई तरह की गज़क , हलवा , मिश्रीखंड , इससे भी अधिक और स्वादिष्ट मिठाई बनाने वाले देश में हम लोग "कुछ मीठा हो जाए के नाम पर केवल चॉकलेट "? विचार करने वाली बात है ध्यान दे !!!

कभी सुना है इस ईद सेवइयों से नहीं चॉकलेट से मुंह मीठा कीजिए ?

कभी सुना है इस क्रिसमस केक नहीं कैडबरी खाइए ?

यह कैडबरी वाले सिर्फ दिवाली, रक्षाबंधन और होली पर ही क्यों एक्टिवेट होते हैं ??

सोचने वाली बात है ना?....सोचिएगा अवश्य !!!


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My Story 3 :- The Reason why I don't make friends!!


लेकिन अब क्या कर सकते थे जो होना था सो हो गया इसे बदल तो नहीं सकते थे । मैंने सोचा वहाँ  जाने से पहले उससे बात कर लूँ
, उसे बता दूँ की मैं उसके के लिए क्या महसूस करता हूँ । इसलिए उसे ढूंढने लगा कैम्पस देखा ; कैंटीन देखा यहाँ तक की हमारे कॉलेज कैम्पस की lover’s spot भी देखा नहीं मिली ; फिर सोचा शायद वो वाशरूम में हो , लेकिन लड़कियाँ अकेले तो नहीं जाती और मुझे उसकी कोई फ्रेंड भी नहीं दिखी , और उधर बस के जाने का समय हो गया था ; गार्ड जी बताने आए मुझे की अब बस जाने वाली है तो मैं जाकर बैठ जाऊँ । मैं जब बस के अंदर गया तो देखा की सभी जगहें फुल्ल थी कुछ अपने अपने squad के साथ बैठे तो कुछ अपने duo के साथ मुझे नहीं लगता की ये बताने की जरूरत है की squad मतलब अपने फ्रेंड ज़ोन या besties के साथ और duo कहा जाये तो couples । तो ज़ाहिर सी बात है की कोई seat शेर नहीं करना चाहेगा । आप सब ये जरूर सोच रहे होंगे की मेरे फ़्रेंड्स भी होंगे तो मैं उनके साथ बैठ गया होगा लेकिन ऐसा नहीं है । दरअसल बात ये है कि मुझ में एक बुराई है कि मैं ज्यादा फ्रेंड्शिप नहीं करता जल्दी ; खुद में ही रेहता हूँ ; खुद से ही बातें करता हूँ । उसके पीछे बहोत से वजह हैं । सबसे बड़ी वजह ये है कि मैं डरता हूँ फ्रेंड्शिप करने से, कहीं उसे खो न दूँ ; वैसे तो आप सभी जानते हैं कि बचपन की फ्रेंड्शिप से ज्यादा सछ फ्रेंड्शिप और कोई नहीं होता । फ्रेंड्शिप तो बड़े भी करते है लेकिन सभी मतलब से करते हैं, आपको 10 में से 9 लोग आपको ऐसे मिलेंगे जो मतलब जो मतलब से सिर्फ फ्रेंड्शिप करेंगे। उनके फ्रेंड्शिप के पीछे क्या स्वार्थ होगा किसी को पता नहीं ।

THE PAST :

बात तब की है जब मैं 7 साल का था उस वक़्त मेरे बहोत से दोस्त थे लेकिन उनमे से एक मेरा बेस्ट फ्रेंड था ; उसे हम सभी प्यार से निककु बोलते थे हम दोनों में बहोत अच्छी दोस्ती थी । हम दोनों में हमेशा मुक़ाबला रेहता था की कौन जीतेगा और कौन हारेगा । कभी वो जीत जाता तो कभी मैं जीत जाता । हमलोग अक्सर स्कूल में ही मिला करते थे उसका घर मेरे घर से आधे घंटे की दूरी पर थी और मुझे अकले जाने नहीं दिया जाता था उतने दूर अगर कभी मैं ज्यादा ज़िद करता था तो माँ चलती थी साथ में ,ऐसे ही समय के साथ हमलोग और भी अच्छे दोस्त बन गए ; कहते हैं न की कोई भी खुशी ज्यादा दिन तक नहीं रहती और जो आपके सबसे करीब है उसे दूर कर देती है हमेशा के लिए ; ऐसा ही कुछ हुआ उस दिन भी बात है स्कूल की  उसने कहा की वो अगले दिन से नहीं आएगा क्योंकि उसके पापा का ट्रान्सफर हो गया है , मुझे सुनने में गलत फहमी हुई और मुझे लगा की वो अगले दिन नहीं आएगा, उसने मुझे अपना नंबर दिया ताकि मैं उससे बात कर सकु । आप सभी को याद हो शायद उस वक़्त एक पेंसिल बॉक्स आती थी जो फोन की तरह दिखता था , तो मैंने उसके नंबर को अपने फोन से डायल किया मेरा मतलब पेंसिल बॉक्स से और मैंने उसे बोला की उसे कॉल कर दिया है मेरा नंबर उसके फोन में चला गया है , वो मुझे बोल रहा था की ये असली नहीं है इससे कॉल नहीं लगता है मैंने उसकी बात मानी ही नहीं उसने नंबर एक कागज पर लिख कर मेरे जेब में रख दिया और उसने मुझे बोला कि मैं उसे कॉल करू घर जा कर । मैं जब घर गया तो भूल गया कॉल करना और जब याद आई तो नंबर खो चुकी थी क्योंकि माँ ने ड्रेस धुलने के लिए दे दिया था । मैंने सोचा कोई न अगले दिन स्कूल में मिलुंगा तो  ले लूँगा लेकिन वो नहीं , मेरे कुछ दोस्तों ने बताया कि वो अब नहीं आएगा । 


एक औरत !

एक औरत ने क्या ख़ूब कहा !

छोटी थी जब बहोत ज्यादा बोलती थी ;

माँ हमेशा डाँटती ,

चुप रहो ! बच्चे ज्यादा नहीं बोलते


जब थोड़ी बड़ी हुई , थोडा भी बचपना करने पर ;

माँ डाँट लगाती 

चुप रहो ! अब तुम बच्ची नहीं रही !


जवान हुई जब , थोडा ज्यादा बोलने पर ;

माँ जोर से फटकारती 

चुप रहो ! तुम्हें दुसरे के घर जाना है 


ससुराल गई जब , कुछ भी बोलने पर

सास ने उलाहने दिए

चुप रहो ! ये तुम्हारा मायका नहीं


घरबार संभाला जब , पति के किसी बात पर बोलने पर ;

उनकी डाँट मिली 

चुप रहो ! तुम्हें आता हीं क्या है 


नौकरी पर गई , सही बात बोलने पर कहा गया ;

चुप रहो ! अगर काम करना है तो


थोड़ी उम्र जब ढली , अब जब भी बोली तो ;

बच्चों ने कहा 

चुप रहो ! तुम्हें इन बातों से क्या मतलब 


बूढी हो गई , कुछ भी बोलना चाही तो सबने कहा ;

चुप रहो ! तुम्हें आराम की जरुरत है


इन चुप्पी की इकलाई में , आत्मा की गहराई में,

बहुत कुछ दबा पड़ा है ;

उन्हें खोलना चाहती हूँ , बहुत कुछ बोलना चाहती हूँ ,

अपनों से एक बार खुल के बातें करना चाहती हूँ ;

जीवन के इस अंतिम पडाव में खुल के जीना चाहती हूँ ,

पर सामने यमराज खड़े हैं , उसने कहा

चुप रहो ! तुम्हारा समय समाप्त हो गया है

और मैं चुप हो गई ;

हमेशा के लिए

खुद के लिए समय ।


 आज कल के रोजमर्रा के ज़िंदगी में हम इतने खो गए हैं कि खुद के लिए कभी समय ही नहीं निकाल पाते हैं। और जब तक ये एहसास होता है कि खुद हमने कहीं खो दिया है इस माया नगरी की जाल में तब तक बहोत देर हो चुकी होती है। 

सभी का तो मैं नहीं बता सकता लेकिन मुझे ऐसा महसूस होता है की मैंने खुद को कही खो दिया है। 

सबके साथ तो होता हूं लेकिन फिर भी एक खालीपन सा रहता है अन्दर। कभी कभी तो मन करता है की ये सब कुछ छोर कर कही दूर चला जाऊं, कहीं जंगलों में पहाड़ों में। फिर एक ज़िमेदारी रोक लेती है परिवार की , इसलिए ऐसे कदम नहीं बढ़ा पाता। 

लेकिन फिर कभी कभी अन्दर से एक आवाज़ आती है , "क्या हूं मैं क्यों हूं मैं"।  क्या मैंने सिर्फ इसलिए जन्म लिया ताकि परिवार की जिम्मेदारियां उठा सकूं। 

हमारे सनातन धर्म ऐसा कहा जाता है की हमलोगों का मनुष्य में  जन्म कई लाख योनियों में जन्म लेने के बाद होता है।  तो क्या सिर्फ परिवार की जिम्मेदारियां उठाने के लिए। 

चलो माना की जिम्मेदारियों से मुंह नही मोड़ सकते , फर्ज़ होता जिन्हें हमे निभाना होता है। तो क्या खुद के लिए कभी समय निकाल पाऊंगा ?