आज कल के रोजमर्रा के ज़िंदगी में हम इतने खो गए हैं कि खुद के लिए कभी समय ही नहीं निकाल पाते हैं। और जब तक ये एहसास होता है कि खुद हमने कहीं खो दिया है इस माया नगरी की जाल में तब तक बहोत देर हो चुकी होती है।
सभी का तो मैं नहीं बता सकता लेकिन मुझे ऐसा महसूस होता है की मैंने खुद को कही खो दिया है।
सबके साथ तो होता हूं लेकिन फिर भी एक खालीपन सा रहता है अन्दर। कभी कभी तो मन करता है की ये सब कुछ छोर कर कही दूर चला जाऊं, कहीं जंगलों में पहाड़ों में। फिर एक ज़िमेदारी रोक लेती है परिवार की , इसलिए ऐसे कदम नहीं बढ़ा पाता।
लेकिन फिर कभी कभी अन्दर से एक आवाज़ आती है , "क्या हूं मैं क्यों हूं मैं"। क्या मैंने सिर्फ इसलिए जन्म लिया ताकि परिवार की जिम्मेदारियां उठा सकूं।
हमारे सनातन धर्म ऐसा कहा जाता है की हमलोगों का मनुष्य में जन्म कई लाख योनियों में जन्म लेने के बाद होता है। तो क्या सिर्फ परिवार की जिम्मेदारियां उठाने के लिए।
चलो माना की जिम्मेदारियों से मुंह नही मोड़ सकते , फर्ज़ होता जिन्हें हमे निभाना होता है। तो क्या खुद के लिए कभी समय निकाल पाऊंगा ?


