सब कुछ अधुरा

 समय के भवर में फस के रह गया हूँ ; खुद की तलाश में खुद  से बिछर गया हूँ , 

मंज़िल की तलाश में मैंने कई ख्वाहिशों  को  दफनाया है , जिससे नफरत थी उसे गले लगाया है 

अपनों को खो दिया है 

जिस रास्ते पर चल रहा हूँ पता नहीं वो रास्ता सही है या गलत मुझे मेरी मंजिल तक पहुंचाएगी या मुझे कही बिच भवर में छोर देगी , अभी जैसा चल रहा है मेरी ज़िन्दगी में समझ नही आ रहा क्या करना सही होगा ; उस जगह को छोर कही दूर जाऊ या वही रहूँ अगर उस जगह को छोरा तो बहुत कुछ छुट जायेगा लेकिन शायद मै एक मौका खो दू खुद को धुंडने का , क्यूंकि ये सवाल अक्सर मेरे अन्दर चलता रहता है आखिर कौन हूँ मै क्यों हूँ मैं  क्यों मैंने जन्म लिया अगर मैंने जन्म लिया भी तो इसी जगह पर क्यों पूरी दुनिया में कही और भी तो जन्म ले सकता था लेकिन शायद तब भी ये सवाल खुद से मैं करता ,  




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